मंगलवार, अक्तूबर 19, 2010

केदार शर्मा

फिल्म जगत के एक महत्वपूर्ण स्तंभ
-राजेश त्रिपाठी
अमृतसर के जिले के नोरवाल में जन्मे केदार शर्मा के माता-पिता बचपन में यही समझते थे कि उनसे कुछ काम-धाम नहीं हो पायेगा। लेकिन केदार शर्मा तो किसी और धातु के बने थे। उनमें बचपन से ही संघर्ष करने का जज्बा था और थी दिल जिस चीज की हामी भरे सिर्फ वही करने की धुन। वे सपनों की दुनिया यानी फिल्म उद्योग से जुड़ने की ठान चुके थे। अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए पहले वे कलकत्ता आये और फिर वहां से बंबई चले गये। फिल्मों में वे हीरो बनने आये थे लेकिन उनकी बेहद पतली आवाज इस राह में रोड़ा बन गयी। हीरो बनने की अपनी इस ख्वाहिश को बाद में उन्होंने अपने बेटे अशोक शर्मा को ‘हमारी याद आयेगी’फिल्म में हीरो बना कर पूरी की। केदार शर्मा खुद भले ही हीरो न बन पाये हों लेकिन फिल्मी दुनिया को राज कपूर, मधुबाला, गीता बाली, तनूजा और माला सिन्हा जैसे अनमोल सितारे देने का श्रेय उन्हें ही है। उन्होंने ‘चित्रलेखा’, ‘जोगन’, ‘बावरे नैन’, ‘सुहागरात’, ‘हमारी याद आयेगी’ और ‘पहला कदम’ जैसी यादगार फिल्मों का निर्माण-निर्देशन, लेखन और गीत लेखन किया।
      स्टारमेकर केदार शर्मा की निर्देशक के रूप में पहली फिल्म ‘औलाद’ थी। संयोग से यह फिल्म ठीक उसी वक्त रिलीज हुई , जब महबूब खान की ‘औरत’ और वी. शांताराम की ‘आदमी’ रिलीज हुई थी। उस वक्त अपनी इस फिल्म के बारे में बात करते हुए वे अक्सर मजाक में कहा करते थे-‘आदमी’ और ‘औरत’ चाहे किसी के भी हों ‘औलाद’ तो मेरी है। इसके बाद आयी उनकी ‘चित्रलेखा’ इसमें प्रमुख पात्र थीं महताब।  ‘चित्रलेखा’ ‘हिट’ हुई, लोग महताब को भी चाहने लगे। ‘चित्रलेखा’ के बाद शर्मा जी काफी मशहूर निर्देशक हो गये।
केदार शर्मा
       इसके बाद वे रंजीत स्टूडियो की यूनिट में शामिल हो गये। उन दिनों इसके मालिक चंदूलाल शाह थे। शर्मा जी ने श्री शाह से ख्वाहिश जाहिर की कि वे मोतीलाल को हीरो लेकर ‘अरमान’ फिल्म बनाना चाहते हैं। मोतीलाल उन दिनों सुपर एक स्टार थे। उन्होंने शर्मा जी के सामने तीन शर्तें रखीं। लेकिन कुछ दिन उनके साथ काम करने के बाद वे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी शर्तें तोड़ दीं। एक बड़ा मजेदार वाकया है। एक दिन जब मोतीलाल सेट पर नहीं पहुंचे तो उन्होंने उनके घर फोन कर के उनकी माता जी के नाम संदेश दे दिया। दूसरे दिन मोतीलाल ने शर्मा जी से बताया कि किस तरह उनकी मां शर्मा जी की पतली आवाज के चलते उनको लड़की समझ बैठी थीं। यह धोखा मेरे साथ भी मुंबई में हुआ था। यह 1972 की बात है। जब उनसे मिलने के लिए मैंने
दादर के अरोमा होटल से उनके घर फोन किया तो उधर से पतली आवाज सुन कर मेरे मुंह से बरबस निकल गया-आप कौन बोल रही हैं, शर्मा जी को दीजिए ना। उधर से फिर उसी पतली
आवाज ने जवाब दिया-‘मैं केदार शर्मा बोल रहा हूं आप श्रीसाउंड स्टूडियो के मेरे दफ्तर में आ जाइए।’

    ‘गौरी’, ‘विषकन्या’ और ‘विद्यापति’ में पृथ्वीराज कपूर के साथ काम कर के वे उनके अच्छे दोस्त बन गये थे। पृथ्वीराज कपूर ने अपने बेटे राज कपूर को शर्मा जी को सौंपते हुए कहा कि वे उसे कुछ काम सिखायें। राज कपूर शर्मा जी के यहां क्लैपर ब्वाय बन गये। एक दिन वे क्लैप देना भूल कंघी से बाल संवारने लगे। केदार शर्मा को बड़ा गुस्सा आया और उन्होंने उन्हें एक थप्पड़ जड़ दिया। वैसे उस दिन शर्मा जी को यह एहसास हो गया था कि राज कैमरे के सामने आना चाहते हैं। अगले ही दिन उन्होंने राज को अपनी फिल्म ‘नीलकमल’का हीरो बना दिया। इस फिल्म की हीरोइन थीं मधुबाला। यानी शर्मा जी के एक थप्पड़ ने राज कपूर को हीरो बना दिया। मधुबाला जिन्हें वीनस आफ इंडिया कहा जाता था, उस वक्त 13 साल की थीं।

    गीता बाली को पहले वे रद्द कर चुके थे क्योंकि वे संवाद शुद्ध नहीं बोल पाती थीं। बाद में वे उनकी फिल्म ‘सुहागरात’ की हीरोइन बनीं। ‘सुहागरात’ के हीरो भारतभूषण थे जो उन दिनों संघर्ष कर रहे थे। शर्मा जी फिल्मों में जमने के लिए खुद संघर्ष कर चुके थे इसलिए उनको संघर्षरत लोगों की मुसीबत का पता था। माला सिन्हा को गीता बाली शर्मा जी के पास इसलिए लायी थीं ताकि वे उनको कुछ अभिनय सिखा दें। बाद में माला उनकी फिल्म ‘रंगीन रातें’ की हीरोइन बनीं।
   ‘हमारी याद आयेगी’ में उन्होंने तनूजा को हीरोइन बनाया। इसमें हीरो बने उनके वकील बेटे अशोक शर्मा। कहते हैं कि अशोक फिल्म में काम नहीं करना चाहते थे लेकिन शर्मा जी की जिद
के आगे उन्हें झुकना पड़ा। तनूजा बड़ी तुनकमिजाज थीं। मां शोभना समर्थ शर्मा जी के पास उन्हें इस उम्मीद से लायी थीं कि वे उनको स्टार बना दें। तनूजा से ठीक से अभिनय कराने में उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी लेकिन उन्होंने उन्हें स्टार बना ही दिया।
 
  शर्मा जी ने सपना सारंग को हीरोइन लेकर फिल्म ‘पहला कदम’ बनायी लेकिन दुर्भाग्य से वह फिल्म सही ढंग से प्रदर्शित नहीं हो सकी। इसके बाद उसे लेकर कुछ टेली फिल्में भी बनायीं। शर्मा जी की प्रतिभा बहुआयामी थी। वे एक साथ निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, पटकथा लेखक और गीतकार भी थे। उनकी चर्चित फिल्मों में 1950 में आयीं फिल्में ‘बावरे नैन’ और ‘जोगन’ भी हैं। इनके अलावा उनको चोराचोरी,गुनाह, नेकी और बदी, दुनिया एक सराय, चांद चकोरी, धन्ना भगत जैसी
फिल्मों के लिए भी याद किया जाता रहेगा। शर्मा जी 1998 तक फिल्मजगत से सक्रिय रूप से जुड़े रहे। 29 अप्रैल 1999 को फिल्मजगत के इस महान निर्देशक ने 89 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। बुलंद हौसले और दृढ़निश्चय वाले शर्मा जी फिल्मी किले के एक सुदृढ़ स्तंभ थे।