शनिवार, मई 01, 2010

सामाजिक-पारिवारिक समस्याओं पर भी खूब फिल्में बनीं

राजेश त्रिपाठी
  हिंदी सिनेमा का इतिहास-11
 1930-1940 तक के बड़े बैनर थे न्यू थिएटर्स, प्रभात, बांबे टॉकीज, मिनर्वा मूवीटोन’, फिल्मिस्तान, वाडिया ब्रादर्स तथा राजकमल। इन सबने सामाजिक समस्याओं से जुड़ी कई फिल्में बनायीं। उन दिनों औरतों को घर तोड़नेवाली के रूप में भी चित्रित किया जाता था। ‘देवदास’, बी.आर. इशारा की ‘चेतना’, बी.आर. चोपड़ा की ‘साधना’, गुरुदत्त की ‘प्यासा’ इसी दिशा में एक प्रयास था। ‘ चेतना’ नयी धारा की फिल्म बनी और उसके बाद इस तरह की कई फिल्में आयीं। एक फिल्म निर्माता की उपेक्षित जिंदगी पर गुरुदत्त ने ‘कागज के फूल’ बनायी। यह भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म थी। जिसके लिए यंत्र विदेश से मंगाये गये थे। फिल्म की प्रोसेसिंग भी विदेश में हुई थी। दुर्भाग्य से यह फिल्म बुरी तरह से फ्लाप रही। एक फिल्म ‘सोने की चिडि़या’ बनी, जिसमें एक युवा अभिनेत्री की जिंदगी दिखायी गयी थी। हृषिकेश मुखर्जी की ‘गुड्डी’ (एक किशोरी की फिल्म अभिनेताओं के प्रति दीवानगी पर) ,श्याम बनेगल की स्मिता पाटील अभिनीत ‘भूमिका’ (प्रसिद्ध मराठी अभिनेत्री हंसा वाडकर की जिंदगी से प्रेरित), सत्यजित राय की बंगला फिल्म ‘नायक’ (उत्तम कुमार अभिनीत एक फिल्मी नायक की जीवनगाथा) भी अपने वक्त की उल्लेखनीय फिल्में रहीं।
महिलाओं पर केंद्रित कथाओं पर हृषिकेश मुखर्जी की ‘ अनुपमा’, ‘अनुराधा’, सत्यजित राय की ‘चारुलता’, वी. शांताराम की ‘ अमर ज्योति’ (1936) उल्लेखनीय फिल्में कही जायेंगी। ‘बॉबी’ (किशोर प्रेम की किशोर वय कलाकार जोड़ी की फिल्म), ‘तराना’ (एक बनजारन और एक रईस युवक की प्रेमकथा), नासिर हुसेन की ‘ जब प्यार किसी से होता है’, ‘हम किसी से कम नहीं’(1978), बाल विवाह पर कारदार की ‘शारदा’ (1942), वी. शांताराम की 1937 में बनी ‘दुनिया न माने’ (वृद्ध व्यक्ति से युवा लड़की के विवाह के कथानक पर),अज्ञातयौवना की कहानी ‘बालिका वधू’, ‘उपहार’, दहेज प्रथा पर वी. शांताराम की ‘दहेज’ (1950) भी यादगार फिल्में हैं। इसके अलावा बी. आर. चोपड़ा की गीतविहीन फिल्में ‘कानून’, और ‘इत्तिफाक’ सस्पेंस फिल्म के रूप में व राजश्री प्रोडक्शंस की ‘तपस्या’ बड़ी बहन के त्याग की कहानी के लिए याद की जाती रहेंगी। राज कपूर की ‘श्री 420’ में चार्ली चैपलिन की तर्ज पर व्यंग्य करने की कोशिश की गयी थी। 1947 में बनी ‘दूसरी शादी’ दूसरी पत्नी की सांसत झेलती पहली पत्नी की व्यथा-कथा थी। ‘बूटपालिश’ राज कपूर द्वारा निर्मित सफल बाल फिल्म थी। ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ और ‘सौतन’ बलिदान होनेवाली दूसरी औरत की कहानी थी। अवैध संतान की कहानी पर 1959 में बी.आर. चोपड़ा की यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘धूल का फूल’ आयी , जिसका मोहम्मद रफी द्वारा गाया गीत- तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इनसान की औलाद है इनसान बनेगा’ काफी लोकप्रिय हआ था। ‘कुआंरा बाप’ और ‘मस्ताना’ में भी यही कथानक दोहराया गया।(आगे पढ़ें)

1 comments:

honesty project democracy ने कहा…

आज के ज्वलंत मुद्दों को उठाती और गंभीर चिंतन को विवश करती हुए प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद /

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