सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

स्टंट फिल्मों का दौर भी खूब था

 हिंदी फिल्मों का इतिहास-4
राजेश त्रिपाठी
‘रामशास्त्री’ प्रभात चित्र ने उस वक्त बनायी थी, जब वी. शांताराम प्रभात को छोड़ चुके थे। यह फिल्म पेशवाओं के युग के इतिहास पर आधारित भारत की श्रेष्ठ ऐतिहासिक फिल्म थी। इतने ऊंचे स्तर की ऐतिहासिक फिल्म उसके बाद नहीं बनायी जा सकी। इस फिल्म को देख कर ही सत्यजित राय फिल्म निर्माण के लिए प्रेरित हुए। पेशवाओं के शासन के वक्त की सही स्थिति को फिल्म में पेश करने का पूरी ईमानदारी से प्रयास किया गया था। कहते हैं कि निर्माता एस फत्तेहलाल ने इसकी शूटिंग की हुई कई हजार फुट फिल्म रद्द करने की जिद की थी, क्योंकि उनका विश्वास था कि यह फिल्म उतनी व्यावसायिक नहीं बन पायी, जितना वे चाहते थे। इसकी पटकथा और संवाद शिवराम वासीकर ने लिखे थे। कोई ऐतिहासिक चूक न रह जाये , इसके लिए पटकथा लेखन के वक्त प्रख्यात इतिहासकारों तक से सलाह ली गयी थी। इस फिल्म में संस्कृत के विद्वान रामशास्त्री द्वारा सत्तालोलुप पेशवा को सन्मार्ग पर लाने के प्रयास की कहानी कही गयी थी। इस फिल्म के तीन निर्देशक थे। इसकी शुरुआती शूटिंग के कुछ अरसा बाद ही राजा नेने ने प्रभात छोड़ दिया। इसके बाद विश्राम बेड़कर ने निर्देशन संभाला, लेकिन उन्होंने भी यह कंपनी छोड़ दी। अंततः गजानन जागीरदार के निर्देशन में यह फिल्म पूरी हुई। गजानन जागीरदार ने इसमें रामशास्त्री की भूमिका भी की थी। ललिता पवार आनंदीबाई बनी थीं । रामशास्त्री के बचपन की भूमिका में अनंत मराठे ने और पत्नी की भूमिका बेबी शकुंतला ने निभायी थी। सप्रू पेशवा माधवराव बने थे।
   वैसे भारत की पहली ऐतिहासिक फिल्म ‘नूरजहां’ 1932 में बनायी गयी थी। इसका निर्माण अर्देशीर ईरानी ने किया था। इस फिल्म का निर्देशन हालीवुड में फिल्म निर्माण का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने वाले एजरा मीर ने किया था। यह पहले अवाक फिल्म के रूप में बनायी गयी थी। बाद में बोलती फिल्मों का युग आते ही इसके कुछ खास हिस्से हिंदी और अंग्रेजी भाषा में डब कर दिये गये। इसके मुख्य कलाकार थे –मजहर खान (पुराने) जमशेदजी , जिल्लू न्यामपल्ली, मुबारक और विमला। इस फिल्म के दोनों संस्करण (हिंदी-अंग्रेजी) बाक्स आफिस पर पिट गये। इसके बाद रमाशंकर चौधरी की फिल्म ‘अनारकली’ आयी। यह भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ सकी।हालांकि अवाक ‘अनारकली’ खूब चली थी। ऐतिहासिक फिल्मों को नयी जान दी सोहराब मोदी की फिल्म ‘पुकार’ (1939)ने । यह फिल्म बेहद कामयाब रही। और इसने ऐतिहासिक फिल्मों के लिए नयी राह खोल दी। मिनर्वा मूवीटोन की इस फिल्म में चंद्रशेखर, नसीम बानो, सोहराब मोदी और सरदार अख्तर ने प्रमुख भूमिकाएं निभायी थीं। यह फिल्म जहांगीर की इंसाफपरस्ती को दरसाती थी। सोहराब मोदी ने सर्वाधिक ऐतिहासिक फिल्में बनायीं। इनमें –सिकंदर, पृथ्वीवल्लभ, झांसी की रानी, मिर्जा गालिब, एक दिन का सुलतान, शीशमहल तथा राजहठ शामिल हैं।
 अन्य उल्लेखनीय ऐतिहासिक फिल्में हैं-के आसिफ कृत स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड की अविस्मरणीय फिल्म ‘मुगले आजम’। इसमें दिलीप कुमार , मधुबाला, पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे की प्रमुख भूमिकाएं थीं। संगीतकार नौशाद ने इसका बड़ा ही पुरअसर और कर्णप्रिय संगीत दिया था। सलीम और अनारकली की प्रेमकथा पर आधारित कई फिल्में बनीं, जिनमें एक फिल्मिस्तान की ‘अनारकली’ भी थी। इसमें प्रदीप कुमार और वीणा राय की प्रमुख भूमिकाएं थीं। संगीतकार सी. रामचंद्र ने इसका बड़ा सुरीला संगीत दिया था। इसके गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। यह फिल्म भी बहुत सफल हुई थी। इस जोड़ी की एक और सफल फिल्म थी ‘ताजमहल’। इसके अलावा ऐतिहासिक कथानक पर कई फिल्में बनती रहीं। यहां तक कि सत्यजित राय की ‘शतरंज का खिलाड़ी’ तक यह सिलसिला चलता रहा। कमाल अमरोही ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर ‘ रजिया सुलतान’ बनायी जिसमें धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की प्रमुख भूमिकाएं थीं। संवादों के कठिन होने के चलते यह फिल्म दर्शकों के सिर के ऊपर से गुजर गयी। किसी को समझ न आने के कारण यह बाक्स आफिस पर पिट गयी हालांकि इसके भव्य सेटों की काफी प्रशंसा हुई। नायकों में प्रदीप कुमार ऐतिहासिक फिल्मों के काफी लोकप्रिय नायक थे। धीरे-धीरे फार्मूला फिल्मों की भीड़ में ऐतिहासिक फिल्में कहीं दब गयीं।
 अवाक फिल्मों के जमाने में लोग चलती-फिरती तस्वीरों का आनंद लेते थे। फिल्म में कौन-कौन काम रहा है, इसके प्रति उनका कोई आकर्षण नहीं था। कलाकारों की लोकप्रियता तब बढ़ी , जब फिल्में बोलने लगीं। आरंभ से ही दो तरह की फिल्में ज्यादा बनती थीं। धार्मिक-ऐतिहासिक या मारधाड़वाली स्टंट फिल्में, ऐतिहासिक फिल्में। ऐतिहासिक फिल्मों के लोकप्रिय होने का कारण यह था कि एक तो इनके सेट भव्य होते थे और युद्ध के दृश्य होते थे। सबसे बड़ा आकर्षण यह था कि दर्शक को यह पता होता था कि वह सच्ची कहानी देख रहा है। मारधाड़वाली फिल्मों की सबसे लोकप्रिय जोड़ी थी-नाडिया-जानकावस की। ये तो उन दिनों स्टंट फिल्मों के सुपर स्टार माने ही जाने जाते थे, इनके साथ काम करने वाला घोड़ा पंजाब का बेटा भी किसी सुपर स्टार से कम नहीं था। जिस फिल्म में ये तीनों होते थे वह फिल्म सुपर हिट होती थी। नाडिया वह नायिका थी जिसके हाव-भाव, अभिनय और आचरण पुरुषों जैसे थे। काले रंग का जैकेट और नकाब , हाथ में लपलपाता हंटर या चमचमाती तलवार, यही पोशाक थी उसकी। वह ऊंची जगह पर खड़ी होकर मुंह में दो उंगलियां डाल कर सीटी बजाती , तो घोड़ा पंजाब का बेटा भागता हुआ वहां आ खड़ा होता, जहां से कूद कर नाडिया को उसकी पीठ पर बैठना था, दूसरी सीटी बजते ही घोड़ा सतर्क हो जाता और नाडिया के कूद कर बैठते ही भाग खड़ा होता। ये तीनों उस जमाने में उतने लोकप्रिय थे , जितने आज के नामी कलाकार । वाडिया ब्रदर्स की फिल्मों में यह जोड़ी पेश की गयी। इस जोड़ी की सर्वाधिक हिट फिल्म थी ‘हंटरवाली’। (आगे पढ़े)

6 comments:

विजयप्रकाश ने कहा…

ब्लाग जगत में आपका स्वागत है.बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख. आपने जानकारियां जुटाने में बहुत परिश्रम किया है

Jayram Viplav ने कहा…

कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो
ये धन के पुजारी
वतन बेंच देगें।
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ , साथ हीं जनोक्ति द्वारा संचालित एग्रीगेटर " ब्लॉग समाचार " से भी अपने ब्लॉग को अवश्य जोड़ें .

shama ने कहा…

Swagat hai...

kshama ने कहा…

Anek shubhkamnayen!

mastkalandr ने कहा…

बहुत अच्छा लेख 'रामशास्त्री ' पेशवाओं के युग के इतिहास पर आधारित भारत की श्रेष्ठ ऐतिहासिक अदभुद फिल्म के बारे में आपने जो कुछ लिख बहुत दिलचस्प लगा,कला के प्रति समर्पित ,मेहनती,
ईमानदार लोगों ने जो हमें नायाब धरोहर दि है उन्हें हमारा सलाम ..
आपका तहेदिल से स्वागत है मित्र.. मक
http://www.youtube.com/watch?v=xee21f_IiY4
http://www.youtube/mastkalandr

मनोरमा ने कहा…

फिल्मों पर अच्छा पढ़ने की चाहत आपके ब्लाग तक लेकर आती रहेगी!

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